नवरात्र व्रत में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता हैं
जोड़ा शिवालय माता के मंदिर में कन्या पूजन किया गया
बेतिया पश्चिम चंपारण बिहार
नगर के लाल बाजार स्थित बेतिया राज जोड़ा शिवालय माता की मंदिर मे अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन एवं इन्नर व्हील क्लब बेतिया के बैनर तले दिन रविवार अष्टमी नवमी को शरदीय नवरात्र की कन्या पूजन किया गया।माता की प्रतिबिंब छोटी-छोटी बच्चियों को आदर सहित आसन देकर बैठाया गया तथा वही हनुमान एवं भैरव के रूप मे छोटे बच्चे को भी आमंत्रित किया गया। उन सभी कन्याओं का पैर स्वच्छ जल से धोया गया और अच्छत्,फूल से आशीर्वाद लिया गया तत्पश्चात उन्हें हलवा पूडी़ मिष्ठान फल के साथ भोजन कराया गया और भोजन के बाद सभी सामाजिक महिला कार्यकर्ताओं ने उन कन्याओं को दक्षिणा देकर और आशीर्वाद ले करके अपनी मनोकामना माता से मांगी और उन्होंने कहा कि जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वैसे ही पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ का भी हर समाज से जुड़े सामाजिक नागरिक आज के दिन माता के कृपया से संकल्प ले और बेटी और पेड़ों को सामान्य सुरक्षा प्रदान हो। नवरात्रि कन्या पूजन में मारवाड़ी महिला सम्मेलन इनरव्हील क्लब की पूनम झुनझुनवाला, मीना तोदी, मंजू काया, सरिता कनोडिया कविता वर्णवाल, आशुतोष वर्णवाल देवकीनंदन शामिल थे तथा सभी कन्याओं को पौधा भी दिया गया ताकि वह अपने घरों में लगाएं।
सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का बहुत महत्व है :-
कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजा जाता है
नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है. माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं
कन्या पूजन पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
कन्या पूजन
वैसे तो कई लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं, शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है।
मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है.
गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करते है और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाते है तथा इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या स्वच्छ जल थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोते है और पैर छूकर आशीष लेते है
उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाते है
फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराते है
भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार देते है और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लेते है
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा दस वर्ष तक कि होती है और इनकी संख्या कम से कम नौ तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है. जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती , उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि नौ से ज्यादा कन्या भोज पर आती है तो कोई आपत्ति नहीं करनी चाहिए।
आयु अनुसार कन्या रूप का पूजन किया जाता हैं :-
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है.
दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है.
छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं.
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है,
सिर्फ नौ दिन ही नहीं है जीवन भर कन्याओं को सम्मान देना चाहिए
नवरात्रों में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. बहूत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है, ऐसा क्यों? क्या ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं. कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है. शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते है। वही जोड़ा शिवालय मंदिर मे ईश्वरीय प्रजापति ब्रह्म कुमारी की कन्याओं ने माता का रूप धारण कर घण्टों विराजमान थी, जिससे माता के भक्त भक्तिमय में खो गए थे।
जोड़ा शिवालय माता के मंदिर में कन्या पूजन किया गया
बेतिया पश्चिम चंपारण बिहार
नगर के लाल बाजार स्थित बेतिया राज जोड़ा शिवालय माता की मंदिर मे अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन एवं इन्नर व्हील क्लब बेतिया के बैनर तले दिन रविवार अष्टमी नवमी को शरदीय नवरात्र की कन्या पूजन किया गया।माता की प्रतिबिंब छोटी-छोटी बच्चियों को आदर सहित आसन देकर बैठाया गया तथा वही हनुमान एवं भैरव के रूप मे छोटे बच्चे को भी आमंत्रित किया गया। उन सभी कन्याओं का पैर स्वच्छ जल से धोया गया और अच्छत्,फूल से आशीर्वाद लिया गया तत्पश्चात उन्हें हलवा पूडी़ मिष्ठान फल के साथ भोजन कराया गया और भोजन के बाद सभी सामाजिक महिला कार्यकर्ताओं ने उन कन्याओं को दक्षिणा देकर और आशीर्वाद ले करके अपनी मनोकामना माता से मांगी और उन्होंने कहा कि जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वैसे ही पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ का भी हर समाज से जुड़े सामाजिक नागरिक आज के दिन माता के कृपया से संकल्प ले और बेटी और पेड़ों को सामान्य सुरक्षा प्रदान हो। नवरात्रि कन्या पूजन में मारवाड़ी महिला सम्मेलन इनरव्हील क्लब की पूनम झुनझुनवाला, मीना तोदी, मंजू काया, सरिता कनोडिया कविता वर्णवाल, आशुतोष वर्णवाल देवकीनंदन शामिल थे तथा सभी कन्याओं को पौधा भी दिया गया ताकि वह अपने घरों में लगाएं।
सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का बहुत महत्व है :-
कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजा जाता है
नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है. माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं
कन्या पूजन पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
कन्या पूजन
वैसे तो कई लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं, शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है।
मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है.
गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करते है और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाते है तथा इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या स्वच्छ जल थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोते है और पैर छूकर आशीष लेते है
उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाते है
फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराते है
भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार देते है और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लेते है
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा दस वर्ष तक कि होती है और इनकी संख्या कम से कम नौ तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है. जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती , उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि नौ से ज्यादा कन्या भोज पर आती है तो कोई आपत्ति नहीं करनी चाहिए।
आयु अनुसार कन्या रूप का पूजन किया जाता हैं :-
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है.
दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं. तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है. त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है. जबकि पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है.
छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं.
दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है,
सिर्फ नौ दिन ही नहीं है जीवन भर कन्याओं को सम्मान देना चाहिए
नवरात्रों में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. बहूत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है, ऐसा क्यों? क्या ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं. कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है. शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते है। वही जोड़ा शिवालय मंदिर मे ईश्वरीय प्रजापति ब्रह्म कुमारी की कन्याओं ने माता का रूप धारण कर घण्टों विराजमान थी, जिससे माता के भक्त भक्तिमय में खो गए थे।
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