सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल, उर्दू सीख रहे राम और   संस्कृत पढ़ रहे रहीम 



करगहर (रोहतास)आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है।

जख्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूं है।।

जब हकीकत है कि हर जर्रे में तू रहता है।

 फिर जमीं पर कहीं मस्जिद  कहीं मंदिर क्यूं है।।


मंदिर -मस्जिद जगह हैं। इंसान अपनी जगह। और इंसानियत अपनी जगह। इंसानियत को मंदिर-मसजिद के भेदभाव से नहीं आंका जा सकता है।  इंसानियत की यह बुनियादी की समझ बकसडा़ के इन समझदार बच्चों और इनके परिवारों में नजर आती है। जो करगहर प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय बकसडा़ जहां ये बच्चे पढ़ते हैं। दरअसल, वे बड़े-बड़ों को गंगा-जमुना के जैसा प्रेम का प्रसंग पढ़ा रहे हैं।
यहाँ एक साथ हिंदू या मुसलमान के बच्चे संस्कृत एवं उर्दू पढ़ते हैं, मानो गंगा-जमुना का प्रेम की धारा सी बह रही हो। इस विद्यालय में जहां बड़ी तादाद में मुस्लिम बच्चे संस्कृत के श्लोक पढ़ते हैं, सीखते हैं। वहीं अनेक हिंदू बच्चे उर्दू की तालीम हासिल कर रहे हैं। इस विद्यालय में प्रत्येक दिन एक साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की भी शिक्षा दी जा रही है।
इस विद्यालय में सुबह की शुरुआत सरस्वती वंदना, गायत्री मंत्र, एकात्म स्त्रोत और शांतिपाठ से होती है। वंदेमातरम, ओम का उच्चारण और सूर्य नमस्कार जैसे क्ति्रयाकलाप होते हैं। सभी छात्र इन्हें स्वेच्छापूर्वक करते हैं। 589 विधार्थी में से 212 छात्र मुस्लिम हैं। लेकिन आप पहचान नहीं पाएंगे कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान।  प्रधानाध्यापक बताते हैं कि आठवीं तक के सभी छात्र संस्कृत और उर्दू पढ़ते हैं। गुरु वंदना के साथ ही वंदेमातरम गाते हैं। जुमे के दिन मुस्लिम छात्रों को नमाज पढ़ने की छूट दी जाती है, ताकि वे समय से मसजिद पहुंच सकें। वही मुखिया प्रतिनिधि मुस्ताक अंसारी का कहना है कि इस विद्यालय में सामाजिक सरोकार सिखाए जाते हैं। बच्चे भी अपने गुरुजनों, सहपाठियों की प्रशंसा करते हैं।
 यहां पढ़ने वाले हिंदू छात्र- छात्राओं का कहना है कि  इस विद्यालय में अच्छी शिक्षा दी जाती है। उर्दू पढ़ने से कोई दिक्कत नहीं है। अच्छी शिक्षा व अच्छे माहौल के कारण ही बकसडा़ सहित आसपास के दर्जनों गांव के कई बच्चे यहां पढ़ते हैं।

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